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किसी भी इंसान की मूलभूत आवश्यकताएं क्या हैं- रोटी कपडा और मकान. देश के संपन्न लोगों के पास इनकी कोई कमी भी नहीं है. पर इसका एक दूसरा पहलू भी है. इस देश में ऐसे लोगों की तादाद करोड़ों में है जिनके पास दो जून की रोटी तक नहीं हैं, न ही तन ढंकने को कपडे हैं और मकान की तो बात ही मत पूछिये, रोज़ आसमान को चादर समझ कर सोते हैं. सवाल ये है कि इस तबके की जरूरतें कैसी पूरी होंगी और ये वो तबका है जो ज्यादा कुछ चाहता भी नहीं. बस इन्हें जीवन जीने के लिए जरुरी न्यूनतम सुविधाएं चाहिए. इन्हें एसईजेड नहीं चाहिए, इन्हें टैक्स में छूट नहीं चाहिए. इन्हें तो बस अपनी जिंदगी का ठिकाना चाहिए. ऐसा नहीं कि सरकार इनके लिए कुछ सोचती नही, मनरेगा, कन्या विद्याधन जैसी कई योजनायें हैं जो इस दिशा में काम कर रही है पर इनका लाभ किसे मिलता है? गरीबी की रेखा से नीचे जीने वाले लोगो को. पर मैं जानना चाहती हूँ की जो मंदिरों के बाहर भीख मांगते हैं उन्हें सरकार कौन सी केटेगरी में रखती है? इन लोगो के लिए तो कभी किसी योजना का एलान नहीं होता. भारत सरकार बदलाव की बात करती है, अच्छा है बदलाव आना भी चाहिए मगर क्या ऊपर ऊपर से ही बदलाव होगा और ज़मीनी हालात नहीं बदलेंगे? किसी भी पेड़ की मजबूती उसकी जड़ पर टिकी होती है, हम निचले तबके को छोड़ कर बदलाव की बात नहीं कर सकते. ऐसे लोगो को स्माल स्केल इंडस्ट्रीज में काम पर रखा जा सकता है, बेरोजगारी भत्ते की जगह रोजगार के अवसर पैदा करना ज्यादा जरुरी है.
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